कुछ आकार सा ले रहा है
विचारों के बादलों को कुछ दिशा सी मिल रही है
धुंधली तस्वीरों पर छाया कोहरा छंट सा रहा है
इस नितदिन के कोलाहल में कुछ साकार सा हो रहा है
कुछ आकार सा ले रहा है,
एक नियम सा, एक दिनचर्या सी
इस व्यस्तता की एक अपेक्षा सी।
हर एक दिन की अनिश्चितता अब कुछ निश्चित सी है,
क्लेश और कलह की हलचल भी एक पूर्वानुमान सी है
इस आकार में एक ख़ुशी है ,एक ठहराव भी है
यदि नवीनता से अलगाव ,तो ठहराव से जुड़ाव भी है
शाम का उत्साह व सुबह का अवसाद
दिनभर की हलचल और रात की स्थिरता
सब कुछ अब जाना पहचाना सा लगता है
किसी अचरज का इंतज़ार, इंतज़ार अंतहीन सा लगता है
वह भावनाओं का अतिरेक , जज़्बातों का वेग
थमा हुआ सा , एक दिनचर्या के तले सांसें गिनता हुआ सा लगता है।
और देखता हुआ झलक , उस भविष्य की
जहाँ न धुंध हैं न बादल है
जहां हर दिन हर दिन जैसा है
अतिरेक व् उत्तेजना की न कोई फेरबदल है
उस सम्पूर्ण फलक में रंगों का यह चित्र
एक आकार सा ले रहा है
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