वो सुबह न जाने कहाँ है ,
जिसकी पहली किरण में नए दिन का प्रकाश है
एक नयी शुरुआत का, नए उत्साह का एहसास है
यह वो सुबह नहीं है ,
जिसमे पक्षियों का कलरव खिलखिलाता संगीत है
और जिसकी ठंडी हवा में भीग जाने की मन में आस है
जिसकी ओस की बूंदों के खुद में समाने की प्यास है
जिसमें नयी मंजिलों की ओर जाने की कोशिश
उन कोशिशों को करने की इच्छा
उस इच्छा को जगाने का प्रयास है |
यह वो सुबह नहीं है …
जिसमे बसते हैं अधूरे सपने , उन सपनो में देखी हुई कहानियाँ
अधूरी कहानियों की वो टीस, मीठी सी, कल्पनाओं की असीमित उड़ान से सजी सी…
उस उड़ान में गुज़रते हुए दिन की वो सुबह …
नहीं, यह वो सुबह नहीं है ,
वो सुबह कहीं लापता है , सुबह होकर भी रात सी है ,
खुद के अंधेरों में कैद सी है, अदृश्य अज्ञात सी है …
या फिर सोच की दीवारों में बंद सी है –
कुछ अफ़सोस की कसक से मंद सी है
रोशनी में गुम उस जुगनू सी है ,
अंधेरे में छुपी आँखों की चमक सी है…
जो बुझ सी रही है
वो सुबह , जो गुम हो सी रही है …
mast 🙂
this is beautiful !!